साल 2007 में गोरखपुर में हुए सांप्रदायिक दंगों को लेकर एक बड़ी खबर आई है। आपको बता दें कि इस मामले में अब सीएम योगी आदित्यनाथ के खिलाफ किसी तरह की कार्रवाई नहीं होगी। इसकी वजह है, इलाहबाद कोर्ट द्वारा उस याचिका को खारिज किया जाना जिसमें सीएम योगी का दंगों में हाथ होने को लेकर फिर से जांच करने की मांग उठाई गई थी।
गोरखपुर के सांप्रदायिक दंगों में योगी आदित्यनाथ की भूमिका पर सुनाई
इलाहबाद कोर्ट ने पिछले साल 18 दिसंबर को ही इस मामले में अपना फैसला सुरक्षित कर लिया था। साथ ही इस मामले पर राज्य की सरकार ने योगी को अपराधी मानने के यह कहकर इनकार कर दिया कि उनके खिलाफ कोई सबूत नहीं है।
इस मामले में जब सीआईडी क्राइम ब्रांच द्वारा जांच की गई तो सरकार ने हाईकोर्ट में मामले की क्लोजर रिपोर्ट लगा दी। जिस पर याचिकाकर्ताओं ने कहा कि बिना किसी जांच और कार्रवाई के क्लोजर रिपोर्ट फाइल की गई थी। जिस पर कोर्ट ने अपील को स्वीकार करते हुए इस पर सुनवाई की।
याचिकाकर्ता की ओर से वकील एस.एफ़.ए. नक़वी ने कहा, “इस मामले में राज्य सरकार ने क्लोजर रिपोर्ट लगा दी थी, लेकिन हमारी इस आपत्ति के बाद कि सरकार के मुलाजिम अपने ही मुख्यमंत्री के खिलाफ मुकदमा चलाने की मांग कैसे करेंगे?”
जब बीजेपी के इन बड़े नेताओं द्वारा दिया गया था भड़काऊ भाषण
साल 2007 में गोरखपुर में हुए इन सांप्रदायिक दंगों में दो लोगों की देहांत हो गई थी साथ ही कई लोग घायल हुए थे।
मामले में दर्ज की गई एफआईआर में कहा गया है कि तत्कालीन सांसद योगी आदित्यनाथ, गोरखपुर के विधायक राधा मोहन दास अग्रवाल और गोरखपुर की तत्कालीन मेयर अंजू चौधरी ने रेलवे स्टेशन के पास भड़काऊ भाषणबाजी की थी जिसके बाद ही यह दंगा हुआ था।
मामले के कोर्ट में पहुंचने के बाद योगी सहित कई बीजेपी नेताओं के खिलाफ शिकायत दर्ज की गई थी। इन नेताओं के खिलाफ एफआईआर दर्ज करवाने वाले गोरखपुर के पत्रकार परवेज परवाज और सामाजिक कार्यकर्ता असद हयात थे।
याचिकाकर्ता का आंखोदेखी वाक्या पर बयान
परवेज परवाज ने बताया कि, “मैंने अपनी आंखों से देखा था कि रेलवे स्टेशन के पास मंच पर ये लोग भाषण दे रहे थे और एक के बदले 10 मुसलमानों को मारने जैसी बातें कह रहे थे। तमाम साक्ष्य मौजूद होने के बावजूद सरकार को कुछ भी नहीं मिला, ये समझ से परे है।”
इनके द्वारा एफआईआर दर्ज होने के बाद सरकार की तरफ से यह मामला सीआईडी को दिया गया था, वहीं याचिकाकर्ताओं का कहना था कि यह केस अन्य किसी एजेंसी को सौंपा जाना चाहिए।
समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी ने भी नहीं ली दिलचस्पी
इस दौरान राज्य में बीएसपी औस सपा की सरकारें आई लेकिन दोनों में से किसी ने भी इस मामले को लेकर कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई। वहीं इस बार जब योगी की सरकार ही सत्ता में आ गई तो मुख्य सचिव ने हाईकोर्ट से ये कहते हुए केस को बंद करने की मांग की कि “जांच एजेंसी को कोई ठोस साक्ष्य नहीं मिल सके।”